क्या है लंपी स्किन बीमारी ?
लंपी स्किन बीमारी (Lumpy Skin Disease) सबसे पहले 1929 में
अफ्रिका में मिली थी. लेकिन पिछले कुछ सालों में ये बीमारी दुनिया के
कई देशों में फैली है. साल 2016 में रूस में इस बीमारी ने तबाही मचाई
थी. तो 2015 में ग्रीस और तुर्की जैसे देशों में भी पशुओं की
मौतों ने हाहाकार मचाया. जुलाई 2019 में ये बीमारी भारत के पड़ौसी देश
बांग्लादेश में देखने को मिली थी. जिसके बाद इसी इलाके के दूसरे देशों
में भी फैली.
साल 2019 में ही चीन और भारत में ये बीमारी पहुंची. जून 2020
तक ये बीमारी नेपाल पहुंच गई. जुलाई 2020 में ताइवान और
भूटान में पहुंच गई. इसके अलावा वियतनाम में अक्टूबर 2020 में
पहुंची.
कुछ तथ्यों का ये भी मानना है कि ये बीमारी सबसे पहले 1971 में
अमेरिका में मिली थी. उसके बाद 1982 में ये नाइजीरिया में
पशुओं में देखने को मिली. और 1986 में भारत के पश्चिम बंगाल में भी
देखी गई थी.
इस बीमारी को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने एक विशेष श्रेणी में डाला
है. जिसके मुताबिक दुनिया के किसी भी देश में अगर ये बीमारी फैलती है. तो इस
बारे में तुरंत विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया जाए. पिछले साल यानि
जनवरी 2021 में दक्षिण भारत के कर्नाटक और तमिलनाडू जैसे
राज्यों में भी ये बीमारी देखी गई.
लंपी स्किन बीमारी एक वायरल बीमारी है. जिसमें गाय भैंस या बैल के
शरीर पर गांठे होने लगती है. ये गांठें मुख्य रुप से इन पशुओं के
जननांगों, सिर, और गर्दन पर होती है. उसके बाद वो पूरे
शरीर में फैलती है. फिर धीरे धीरे ये गांठें बड़ी होने लगती है. वक्त के साथ
ये गांठें घाव का रुप ले लेती है. इस पीड़ा से ज्यादातर पशुओं को
बुखार आने लगता है. दूधारु पशु दूध देना बंद कर देते है. कई गायों का इस
पीड़ा से गर्भपात भी हो जाता है. और कई बार मौत भी हो जाती है.
एक पशु से दूसरे पशु में कैसे फैलती है?
ये एक वायरल बीमारी है. जो एक पशु से दूसरे पशु में पहुंचती है. जब
शरीर पर गांठें और घाव होते है तो उस पर मच्छर और
मक्खियां बैठती है. इन घावों से उठकर मच्छर दूसरे पशुओं के शरीर पर
बैठते है. उनका खून चूसते है. तो ये बीमारी उस पशु में भी पहुंच जाती
है. इसके अलावा बीमारी पशु के झूठे पानी और चारे को दूसरा पशु खाता है. तो
लार की वजह से एक से दूसरे में ये बीमारी पहुंच जाती है.
लंपी स्किन बीमारी की दवा क्या है?
ये एक वायरल संक्रमण है. जिसका सीधे तौर पर कोई इलाज नहीं है. लेकिन
जैसे कोरोना से बीमार होने पर इंसान को बुखार नियंत्रण और एनर्जी की कई
दवाईयां दी जाती थी. वैसे ही इस बीमारी में भी पशु के बुखार को नियंत्रित
करने. शरीर के घावों पर नियंत्रण और गांठों को कम करने के लिए अलग अलग तरह की
दवाईयों का इस्तेमाल लिया जा रहा है.
इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए कोई एक दवा दी जा सकती है. इसके अलावा पशु
चिकित्सक से सलाह लेकर ब्रोड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक और एक
कैल्शियम का इंजेक्शन दिलाने से भी फायदा मिल सकता है.
अभी के वक्त पश्चिमी राजस्थान में लोग ज्यादातर होम्योपैथी की
Arsenic 200, Balladona 200 और Thuja 200 का इस्तेमाल
लिया जा रहा है. जिसमें तीनों दवाओं को सुबह पशु को भूखे पेट या रात में चारा
पचने के बाद दी जाती है. तीनों दवाओं की 5-5 बूंदें रोटी के छोटे छोटे
टुकड़ों पर दी जा रही है.
इसके अलावा होमेओनेस्ट वी ड्रॉप्स 25 और
मैरीगोल्ड एंटीसेप्टिक स्प्रे का भी इस्तेमाल किया जा रहा है.
होमेओनेस्ट वी ड्रॉप्स 25 के जरिए पशु में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जाती
है. ये दवा पशु को दिन में तीन बार 20-25 बूंद पिलानी चाहिए. तो मैरीगोल्ड
एंटीसेप्टिक का घाव पर स्प्रे किया जाता है. ये कोर्स करीब 10 से 15 दिन तक
दिया जाता है.
चूंकी ये एक वायरल बीमारी है इसलिए इसमें
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, बुखार नियंत्रित करने और घाव को बढ़ने
से रोकने के लिए कई तरह की अलग अलग दवाएं बाजार में है. जिसका इस्तेमाल लोग
कर रहे है. लेकिन अभी तक कोई ऐसी बीमारी सामने नहीं आई है. जो वैश्विक स्तर
पर इसी बीमारी के इलाज के लिए मान्यता प्राप्त हो.
पशु बीमार होने पर ये ध्यान रखें
पशु में लक्षण दिखते ही सावधान हो जाएं. बीमार पशु को तुरंत अन्य
पशुओं से अलग कर दें. बीमार पशु के खाने-पीने की व्यवस्था अलग करनी
चाहिए. बीमार पशु का जूठा दूसरे पशुओं को नहीं खिलाना/पिलाना
चाहिए. बीमार जानवर को खुला नहीं छोड़ना चाहिए. क्योंकि खुले में वो भी घास
खाएगा. उसी घास पर बीमार पशु की लार भी लगेगी. जिससे वो अन्य पशुओं में भी
फैलेगी. ऐसे कीटनाशकों का स्प्रे करें जिससे मच्छर, मक्खियां उस पशु को न
काटें.
कितनी खतरनाक बीमारी, क्या कर रही सरकार?
भारत में 20वीं पशुगणना के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो देश में
गोधन करीब सवा 18 करोड़ है. और भैंसों की संख्या 11 करोड़ के
लगभग है. देश की बड़ी आबादी पशुधन पर निर्भर है. ऐसे में अगर ये बीमारी तेजी
से पांव पसारती है. तो ये बेहद चिंताजनक है. शासन और प्रशासन को जरुरत
है. वक्त रहते ग्रामीण स्तर पर पशु चिकित्सा व्यवस्था को सक्रिय किया जाए.
पशु चिकित्सकों को गांव गांव का दौरा करने के निर्देश दिए जाएं. जरुरत इस बात
की भी है कि सरकारी तनख्वाह पर काम कर रहे पशु चिकित्सक ऐसे विकट समय
में आम लोगों से बिना अतिरिक्त फीस लिए नि:शुल्क जांच और ईलाज करें. जो कि
सरकार द्वारा पहले से तय किया गया है. राज्य सरकार को मिशन मोड पर इस
बीमारी से संबंधित दवाईयों की सप्लाई पर काम करना पड़ेगा. ये सुनिश्चित करना
होगा कि इसकी कालाबाजारी न हो और इस पर तय कीमतों से ज्यादा
वसूली न हो.
कुछ अन्य जानकारियाँ
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यह मवेशियों में तेजी से फैलने वाला विषाणु जनित गाँठदार त्वचा रोग
हैं।
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यह अफ्रीका और पश्चिम एशिया के कुछ हिस्सों में होने वाला स्थानीय रोग है,
वर्ष 1929 में पहली बार इस रोग के लक्षण देखे गए थे।
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जुलाई 2019 में दक्षिण पूर्व एशिया (बांग्लादेश) में इस रोग का पहला मामला
सामने आया था।
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भारत में इसका पहला मामला मई 2019 में ओडिशा के मयूरभंज में दर्ज किया
गया।
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भारत जिसके पास दुनिया के सबसे अधिक (लगभग 303 मिलियन) मवेशी हैं, में बीमारी
सिर्फ 16 महीनों के भीतर 15 राज्यों में फैल गई हैं।
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भारत के गोवंशों (Bovines) में गाँठदार त्वचा रोग या 'लम्पी स्किन डिजीज'
(Lumpy Skin Disease or LSD) के संक्रमण के मामले देखने को मिले हैं। भारत
में इस रोग के मामले पहली बार इतने बड़े स्तर पर दर्ज किये गए हैं।
संक्रमण का कारण
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मवेशियों या जंगली भैंसों में यह रोग लम्पी स्किन डिसीज वायरस (LSDV) के
कारण होता है।
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यह वायरस कैप्रिपॉक्स वायरस' (Capripox Virus) जीनस के भीतर
तीन निकट संबंधी प्रजातियों में से एक है, इसमें अन्य दो
प्रजातियाँ शीपॉक्स वायरस (Sheeppox Virus) और गोटपॉक्स वायरस (Goatpox
Virus) हैं।
रोग के लक्षण
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बुखार, लार, आंखों और नाक से सवण, वजन घटना, दूध उत्पादन में गिरावट,
पूरे शरीर पर कुछ या कई कठोर और दर्दनाक गाँठ के रूप में दिखाई देते
हैं। त्वचा के घाव कई दिनों या महीनों तक बने रह सकते हैं। क्षेत्रीय
लिम्फ नोड्स सूज जाते हैं और कभी-कभी उदर और छाती के आसपास सूजन
विकसित हो सकती है। कुछ मामलों में यह नर और मादा में लंगड़ापन,
निमोनिया, गर्भपात और बाँझपन का कारण बन सकता है।
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इस बीमारी में शरीर पर गांठें बनने लगती हैं, यह गाठे दो से
पाँच सेंटीमीटर व्यास की हो सकती हैं। जो कि खासकर सिर, गर्दन,
और जननांगों के आसपास देखी जा सकती है।
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इसके बाद धीरे-धीरे गांठे बड़ी होने लगती हैं और फिर ये घाव में
बदल जाती हैं।
- इस बीमारी में गाय को तेज बुखार आने लगता है।
- गाय दूध देना कम कर देती है।
- मादा पशुओं का गर्भपात हो जाता है।
- कई बार गाय की मौत भी हो जाती है।
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इसके अन्य लक्षणों में सामान्य अस्वस्थता, आँख और नाक से पानी आना,
बुखार तथा दूध के उत्पादन में अचानक कमी आदि शामिल है।
इस रोग से प्रभावित मामलों में रोगी पशुओ में मृत्यु दर 10% से भी कम
है।
रोग का संक्रमण
यह रोग मच्छरों, मक्खियों और जूं के साथ पशुओं की लार तथा दूषित जल के संक्रमण
के कारण होता है।
एवं भोजन के माध्यम से एक पशु से दूसरे पशुओ में फैलता है।
रोकथाम
- फार्म और परिसर में सख्त जैव सुरक्षा उपायों को अपनाएं।
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नए जानवरों को अलग रखा जाना चाहिए और त्वचा की गांठों और घावों की जांच की
जानी चाहिए।
- प्रभावित क्षेत्र से जानवरों की आवाजाही से बचें।
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प्रभावित जानवर को चारा, पानी और उपचार के साथ झुंड से अलग रखा जाना
चाहिए. ऐसे जानवर को चरने वाले क्षेत्र में नहीं जाने देना चाहिए।
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उचित कीटनाशकों का उपयोग करके मच्छरों और मक्खियों के काटने पर
नियंत्रण। इसी तरह नियमित रूप से कीट/मच्छर विकर्षक दवा का उपयोग करें,
जिससे कीट/मच्छर संचरण का जोखिम कम हो जाएगा।
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इसमें फार्म व उसके आस-पास के स्थानों पर साफ-सफाई का विशेष ध्यान
रखें।
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रोग से बचाव के लिये अन्य स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण करना रोग से बचाव के लिए
वर्तमान में टीके का निर्माण प्रक्रियाधीन है। वर्तमान में बकरी के चेचक के
टीके का इस रोग में उपयोगी सिद्ध हो रहा है। स्वस्थ पशुओं में रोग से बचाव के
लिए टीकाकरण करवाया जाना सर्वोत्तम उपाय है।
उपचार
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लम्पी डिसीज वायरस का कोई इलाज नहीं होने के कारण टीकाकरण ही रोकथाम व
नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन है।
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त्वचा में अन्य संक्रमणों के फैलाव को रोकने के लिये उपचार गैर स्टेरॉयडल
एंटी-इंफ्लेमेटरी (Non & Steroidal Anti & Inflammatories) और
एंटीबायोटिक दवाओं के साथ किया जा सकता है। है। पशुपालक संक्रमित घाव को एक
प्रतिशत पोटैशियम परमेगनेट (लाल दवा) अथवा फिटकरी के घोल से साफ कर
एन्टीसेपटीक मलहम लगाकर संकमण को नियंत्रित कर सकते है। अधिक जानकारी के लिए
स्थानीय पशुचिकित्सालय से संपर्क करें।
अगर जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। ताकि सभी
लोग इस बीमारी के प्रति जागरूक हो सके।